हिंदू धर्म में कुंभ (Kumbh) मेला एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है | जिसमें देश-विदेश से सैंकड़ों की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं| हिन्दू धर्म में कुम्भ का पर्व प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल पर हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है|
प्रयाग में दो कुंभ मेलों (Kumbh Mela) के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है। इस दिन बननें वाले योग को कुंभ स्नान-योग कहते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है, कि किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं, और मनुष्य को जन्म-पुनर्जन्म तथा मृत्यु-मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कलश को कुंभ कहा जाता है, और कुंभ का अर्थ घड़े से है । इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में प्राप्त अमृत कलश से सम्बंधित है। देवता-असुर जब अमृत कलश को एक दूसरे से छीन रह थे, तब उसकी कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों में गिरी थीं। जहां जब ये बूंदें गिरी थी, उस स्थान पर तब से कुंभ का आयोजन किया जाता है।
समुद्र मंथन की कथा के अनुसार, कुंभ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे। देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के समतुल्य है, इसलिए तारों के क्रम के अनुसार प्रत्येक 12वें वर्ष कुंभ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है।
देवताओं और असुरो के मध्य युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी, अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, तब कुंभ का योग होता है, और चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।