अगर हम बात करें इस प्रश्न पर कि देना अच्छा होता है या लेना तो अक्सर लोग कहते है देना अच्छी चीज़ होती है और आगे इसी क्रम में हम पूछे कि ऐसा क्यों ? तब लोग बताते है कि इससे मन बहुत प्रसन्न होता है साथ ही साथ अध्यात्मिक सुख भी मिलता है किन्तु ऐसा अनुभव करने वालो की संख्या बहुत कम ही है |
संसार के अधिकतर मनुष्य आज परेशानी में है जिसका मूल कारण एक है, वो है सुख की तलाश इसी की खोज में वह रोज़ भटक रहा है पर सुख नहीं ढूँढ पा रहा | जिन सुखों के पीछे वो जा रहा है वो कुछ देर के सुख है |अगर मनुष्य को ये पता चल जाये कि सतत सुख क्या है और कहाँ मिलेगा तो उसके जीवन की समूल परेशानी ही खत्म हो जाये |
जैसे की ऊपर बताया है कि देना और लेना, दोनों में “देना” उत्तम माना गया है | उसका कारण सिर्फ और सिर्फ एक है वो है, सतत सुख की प्राप्ति क्योंकि ये अध्यात्मिक सुख है | ऐसा करने से अर्थात किसी को कुछ देने से आपको वो सब मिल जाता है जिसकी जरुरत आपको इस संसार में होती है |
देने में ये मायने नहीं रखता कि आप किसी को क्या दे रहे है वो आपका समय, पैसा, ख़ुशी या कोई भी वस्तु हो सकती है जिसकी लेने वालो को बहुत जरुरत है पर देने मे इस बात का ख्याल रहे कि देते समय आपकी मनःस्थिति क्या है आप खुश होकर दे रहे या दुखी होकर और मजबूरी में अगर ऐसा कर रहे है, तो बेहतर है आप उस समय न दे | किसी और समय दे, मगर दे ऐसे की आपका मन प्रसन्न हो, देने का तभी अध्यात्मिक लाभ होगा और सतत सुख की प्राप्ति भी होगी|
जब आप दिल से कुछ किसी को देते है तब ये जानिए कि वह बेहद लाभकारी होता है बशर्ते इसकी लेने वालो को बेहद जरुरत हो मतलब ये हुआ कि जरुरत मंद व्यक्ति को देना ही श्रेस्कर होता है, अगर आपको ऐसा व्यक्ति मिल गया तो अपने आपको सौभाग्यशाली समझना चाहिए क्यूंकि देने से वो आपको मिल सकता है जो कभी कुछ पाने कि चाह में नहीं मिला हो, ये मेरा अनुभव रहा है |
इसलिए देने का जब भी जीवन में अवसर आये तो कभी भी इसे हाथ से न जाने दे, क्योंकि देने का आपको तुरंत फल मिलेगा भले आप इसे कुछ दिन बाद महसूस करें लेकिन मिलेगा ये निश्चित है । देकर आपको हमेशा संतोष ही होगा बशर्ते जैसा की उपर बताया मैंने अच्छे मन से दिया गया हो, इससे आप अच्छा महसूस करेंगे। इसी को देने का सुख कहते है | यही तो है देने का सुख!