स्कूली शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक काम कराने को लेकर अधिकारियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि नगर निगमों द्वारा प्रधानाचार्यों और शिक्षकों से गैर- शैक्षणिक काम ना कराएँ जो शिक्षा का अधिकार कानून और इससे जुड़े नियमों के विरुद्ध हों।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, निगमों की ओर से जारी काफी अधिसूचनाओं में प्रधानाचार्यों और शिक्षकों को निर्देश दिए गये थे कि वे प्रत्येक घरों में जाकर सर्वेक्षण करें और साथ ही वार्ड शिक्षा रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया में भी भाग लें, परन्तु न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने ऐसी कई अधिसूचानाओं को खारिज करते हुए साफ कर दिया और कहा कि अधिकारी स्कूली बच्चों के बैंक खाते खुलवाने और उन्हें आधार कार्ड से जोड़ने में प्रधानाचार्यों और शिक्षकों की मदद लेने के मामले में बिलकुल सही हैं। परन्तु इस मामले में उनकी मदद लेना भी अधिक आवश्यक नहीं है इसलिए शिक्षकों के इसमें मदद न करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई का आधार नहीं बनाया जा सकता है |
कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि इस मामले पर न्यायिक रूप से गौर करना काफी आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान समय में स्कूलों द्वारा शिक्षकों से ऐसे कुछ काम कराने की योजना चली आ रही है कि जिनका शिक्षण-अध्यापन से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं है। इसलिए यह अदालत मामले पर स्वीकृत प्रदान नहीं करती है |
अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ दिल्ली के नगर निगमों द्वारा संचालित स्कूलों के शिक्षकों के संगठन ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को गैर – शैक्षणिक काम ना कराने की चुनौती दी थी।