वर्तमान समय में
प्रत्येक व्यक्ति अच्छी सुविधाओं वाली जिंदगी के पीछे भाग रहा है, और लगभग सभी
व्यक्ति लग्जरी लाइफ का सपना देखते है, लेकिन सुकून की नींद और मन का चैन व्यक्ति
को जिस स्थान पर प्राप्त होता है, वहीं असली जिंदगी है। हम बात रहे है, ऐसे
एक शख्स की जिनका नाम डॉ. आलोक सागर है, वह आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर हैं, उनसे
शिक्षा प्राप्त करनें वाले अनेक छात्र बड़ी- बड़ी कंपिनयों में अच्छे पदों पर
कार्य कर रहे है।
सबसे खास बात यह है, कि डॉ. आलोक जी लगभग पिछले 29 वर्षो से जंगल में जंगलवासियों के बीच निवास कर रहे है । वह जिस झोपडी में रहते है, उसका आकर 10X10 है| वह इस छोटी सी झोपड़ी में सिर्फ दो कुर्ता-पायजामा और एक सायकिल के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, डॉ. आलोक जी RBI के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन के गुरु हैं।
वह बहुत सी भाषाओं के जानकार हैं। डॉ. सागर ने आईआईटी दिल्ली से ही इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर वह अमेरिका की ह्यूसटन यूनिवर्सिटी चले गए थे| पीएचडी पूरी करने के बाद 7 साल कनाडा में नौकरी भी की। डॉ. आलोक सागर अब जंगल में रह रहे हैं, उनका मुख्य उद्देश्य जंगलवासियों के बीच स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना है।
वह आदिवासियों के आर्थिक और सामाजिक हित की लड़ाई भी लड़ते हैं। मोबाइल का उपयोग नहीं करते और साइकिल के अलावा कुछ राशन और झोपड़ी में रखे कुछ बर्तन ही उनकी पूंजी हैं। उन्होंने कोचमऊ में सैकड़ों फलदार पेड़ लगाए हैं। इनमें चीकू, लीची, अंजीर, नीबू, चकोतरा, मोसमी, किन्नू, सन्तरा, रीठा, आम, महुआ, आचार, जामुन, काजू, कटहल, सीताफल के पेड़ शामिल हैं।
डॉ. आलोक सागर का जन्म दिल्ली में जन्म 20 जनवरी 1950 को हुआ था । वह बाद के दिनों में आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर बने। उन्होंने जरूरतमंदों के लिए कुछ करने की जिद में नौकरी छोड़ दी। उनके पिता सीमा शुल्क उत्पाद शुल्क विभाग में कार्यरत थे। उनके छोटे भाई अंबुज सागर भी आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर हैं, जबकि उनकी बहनें अमेरिका, कनाडा में नौकरी करती हैं।
डॉ. आलोक सागर की वर्तमान आयु लगभग 69 वर्ष है, इस आयु में भी वह प्रतिदिन खापा पंचायत के कोचामऊ गांव के खेत में लगे पौधों में बाल्टी से पानी डालने जाते हैं, यदि उन्हें कही जाना होता है, तो इसके लिए वह साइकिल का प्रयोग करते है|
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर उनकी प्रतिक्रिया उनके सहज दार्शनिक अंदाज उनके वास्तविक अनुभव को दर्शाता है। उनका कहना है, कि वर्तमान शिक्षा में इंसान को नौकर बनाने पर अधिक फोकस किया जा रहा है, लोग अपने बच्चों को शिक्षा से जोड़कर निश्चित हो जाते हैं, आदमी दिमाग का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। लोग कहते हैं, दिल्ली में बैठा आदमी गांव की सोच रहा है। जबकि गांव के आदमी को गांव के हित के लिए सोचना चाहिए। व्यवस्था ने इंसान का दिमाग अस्थिर कर दिया है।