‘द फकीर ऑफ वेनिस’ फ़िल्म लगभग 10 साल में बनकर दर्शकों के बीच रिलीज हो रही है | इस फ़िल्म के निर्देशक आनंद सुरापुर हैं, जिन्होंने इस फ़िल्म की कहानी को ऐसा बना दिया है, कि लोगों को यह कहानी बहुत अधिक पसंद आयेगी|
इस फ़िल्म की कहानी ऐसी है, कि आपको मालूम भी नहीं चलेगा, कि आप फ़िल्म को देखते-देखते कैसे इसकी कहानी में खो जाते हैं | यह बात बिल्कुल सत्य है, कि यह फ़िल्म कोई कामर्शियल फिल्म नहीं है, यह फ़िल्म खास दर्शक वर्ग को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है | आप इस फ़िल्म में काफी मनोरंजन भी करेंगे |
इस फ़िल्म में फरहान अख्तर एक फोटोग्राफर का रोल अदा कर रहें है, जो एक फकीर की खोज करके अपने कैमरे में उतारने की कोशिश में लगा रहता है | वहीं इस फ़िल्म में अन्नू कपूर एक पेंटर का किरदार निभाते हुए नजर आयेंगे | जो अपनी तपस्या काफी लम्बे समय तक बालू के नीचे दबकर करते हैं |
फ़िल्म की कहानी
कहानी की शुरुवात होती है, अदी (फरहान अख्तर) से, जो एक जुगाड़ू फोटोग्राफी करने वाला होता है और वह अलग-अलग तरह के प्रॉडक्शन करने की कोशिश करता रहता है। इसके बाद उसे उसके असाइनमेंट में वेनिस के म्यूजियम में एक ऐसे योगी को लाने के लिए कहा जाता है, जो अपने आप को बालू में दबाकर साधना में लीन हो सके |वह ऐसे ही एक योगी के तलाश में जुट जाता है, इसके बाद वह उस साधू की तलाश कर लेता है | उसकी मुलाक़ात साधु, सत्तार (अन्नू कपूर) के रूप में मुंबई के जुहू बीच पर होती है। सत्तार साधू कोई नहीं होता है, बल्कि वह अपनी बहन सईदा के साथ जुहू बीच पर करतब दिखने वाला एक गरीब शराबी होता है, जो ढेर सारे पैसों के लिए रेत के अंदर अपनी साँस रोकर दफन होने के लिए तैयार हो जाता है |
इंडिया से वेनिस आने के बीच दोनों को काफी कुछ सहन करना पड़ता है और इस सिलसिले में कड़वे सच के साथ ही ब्लैक ह्यूमर भी उत्पन्न हो जाता है, यह दृश्य दर्शकों को काफी कुछ सोचने पर विवश करेगा |
यह फिल्म की अवधि 1 घंटे 38 मिनट है, यदि हम अभिनय की बात करे तो, फरहान अख्तर ने टिपिकल अरबन लड़के के रोल को बखूबी निभाया है। फिल्म में वह बेहद स्वार्थी और मतलबी दिख रहे है, जिसे अदा करने में फरहान पूरी तरह से सफल रहे हैं। अन्नू कपूर ने सत्तार के चरित्र में बेहतरीन अभिनय किया है। सत्तार के रूप में उनका शराब के लती के तौर पर गिड़गिड़ाने वाले भाव द्रश्यों में एक नई जान डाल देते हैं।