आर्टिकल 35A और अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में दो ऐसे अनुच्छेद है, जो जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार प्रदान करते हैं| पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और जम्मू कश्मीर के महाराजा हरी सिंह के मध्य हुए समझौते के बाद अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में जोड़ा गया था|
“दिल्ली समझौता ” वर्ष 1952 में जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और भारत के प्रधानमंत्री नेहरु के मध्य हुआ था | इस समझौते के अंतर्गत जम्मू और कश्मीर के निवासियों को भारत का नागरिक मान लिया गया था | वर्ष 1952 के दिल्ली अग्रीमेंट के बाद ही 1954 का विविदित कानून ‘अनुच्छेद 35A’ बनाया गया था|
वर्ष 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बनाया गया था| इस संविधान के अनुसार जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो अथवा उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही उसने वहां संपत्ति प्राप्त की हो
आर्टिकल 35 A क्या होता है?
आर्टिकल 35A संविधान में शामिल प्रावधान है, जो जम्मू और कश्मीर विधानमंडल को यह अधिकार प्रदान करता है, कि वह जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासी निर्धारण करे, और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में किसे विशेष आरक्षण दिया जायेगा, किसे संपत्ति खरीदने का अधिकार होगा, किसे जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार होगा, छात्रवृत्ति तथा अन्य सार्वजनिक सहायता और किसे सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का लाभ मिलेगा ? इस धारा में यह भी प्रावधान है, कि इसके अंतर्गत विधान सभा द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को संविधान अथवा देश के किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं माना जाएगा |
आर्टिकल 35A, जम्मू-कश्मीर को राज्य के रूप में विशेष अधिकार प्रदान करता है, इसके अंतर्गत दिए गए अधिकार ‘स्थाई निवासियों’ से सम्बंधित हैं, अर्थात जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार को यह अधिकार है, कि वह आजादी के समय दूसरे स्थानों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सुविधाएं देना है, अथवा नहीं |
आर्टिकल 35 A विवाद क्या है?
सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिकाओं में कहा गया है, कि धारा 35A भारत की एकात्मता की भवाना के प्रतिकूल है, क्योंकि इससे भारतीय नागरिकों के अंदर वर्ग के भीतर वर्ग का निर्माण होता है| यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य के अस्थायी नागरिकों को राज्य के अन्दर आजीविका प्राप्त करनें तथा सम्पत्ति क्रय करने से रोकती है, अर्थात यह धारा भारतीय संविधान की धारा 14, 19 और 21 में दिए गये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है| इस धारा के लागू होनें के कारण राज्य के अस्थायी निवासी चुनाव नहीं लड़ सकते तथा अस्थायी नागरिकों के बच्चों को छात्रवृत्ति नहीं प्राप्त होती है, और वह इसके लिए किसी न्यायालय की शरण नहीं ले सकते|
जम्मू-कश्मीर का संविधान विभाजन के समय राज्य में आने वाले शरणार्थियों से सम्बंधित विषयों को “राज्य का धारा 35A को असंवैधानिक रूप से शामिल किया गया था, क्योंकि संविधान की धारा 368 के अनुसार संविधान में संशोधन केवल संसद ही कर सकती है | धारा 35A का अनुसरण करते हुए जो-जो कानून बने हैं, वह सभी संविधान के भाग 3 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों, विशेषकर धारा 14 (समानता का अधिकार) और धारा 21 (जीवन की सुरक्षा का अधिकार) का उल्लंघन है|
विवाद से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी
वी द सिटीजन नामक एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी, जिसमें 35A को समाप्त करनें की प्रार्थना की गई और आधार यह दिया गया कि यह एक संवैधानिक संशोधन था जिसको धारा 368 के तहत संसद् द्वारा विचारित किया जाना था और यह संसद् में कभी भी स्वीकृति हेतु पेश नहीं किया गया|
संविधान में कुल मिलाकर 395 अनुच्छेद हैं, जिनमें 35A कहीं नहीं है, यह संविधान के परिशिष्ट में एक जगह यह पाया जाता है, इस अनुच्छेद को हटाने हेतु एक दलील यह दी जा रही है कि इसे संसद् के जरिए लागू नहीं करवाया गया था|
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अनुरोध किया है, कि वह इस जटिल विषय में निर्णय दे| दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर सरकार ने यह गुहार लगाई है, कि धारा 35A को निरस्त नहीं किया जाए, क्योंकि यह कानून 60 वर्षों से चला आ रहा है|
दो कश्मीरी महिलाओं ने भी धारा 35A को यह कहते हुए चुनौती दी है, कि यह पक्षपात पूर्ण है| यदि वह जम्मू – कश्मीर राज्य के अलावा किसी बाहरी व्यक्ति से शादी करती हैं, तो उनके और उनके बच्चों के सभी अधिकार भी समाप्त हो जाते हैं|