इस नयी टेक्नोलॉजी द्वारा मालूम होगी सटीक मानसून की तारीख, जानिए क्या है ये ?

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भारत में प्रत्येक वर्ष मानसून आते है, मौसम वैज्ञानिकों द्वारा इसकी तारीख की सटीक घोषणा नहीं हो पाती है, इसका मुख्य कारण पुरानी टेक्नोलॉजी है, जिससे कभी- कभी हमे भारी नुकसान उठाना पड़ता है, अभी हाल ही में फ्लोरिडा विश्वविद्यालय ने एक रिसर्च किया है, जिसके अनुसार उन्होंने मानसून की सटीक जानकारी के लिए नयी टेक्नोलॉजी विकसित की है |

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फ्लोरिडा राज्य विश्वविद्यालय में मौसम वैज्ञानिक प्रो. वासु मिश्रा ने एक अध्ययन किया है, जिसमे उन्होंने पाया की उत्तर पूर्व मानसून के आने पर दक्षिणी प्रायद्वीप की सतह का तापमान बदल जाता है, यदि तापमान के बदलाव का सही से अध्ययन कर लिया जाए तो फिर मानसून की दस्तक का सही पता लगाया जा सकता है | इनका अध्ययन मासिक पत्रिका वेदर रिव्यू में प्रकाशित किया गया है |

अध्ययन में उत्तर पूर्व मानसून की शुरुआत-समाप्ति की तारीखों की पहचान की गयी है यह तारीख क्रमश: 6 नवंबर और 13 मार्च के रूप में  मिली है | इस अध्ययन में भारतीय मानसून के संबंध में अबतक अपनाई जा रही परिभाषाएं और नीतियों को पलटने वाला माना जा रहा है |

नयी टेक्नोलॉजी का असर

यह अध्ययन दक्षिण भारतीयों के स्वास्थ्य और रोजगार को प्रभावित होने से बचाने में मददगार साबित हो सकता है | इस अध्ययन में प्रो. वासु मिश्रा ने पाया की कि शिशु और वयस्क मृत्यु दर, श्वसन संबंधी बीमारियों के इलाज में इससे सहायता मिल सकती है | कृषि में चावल की खेती जमीनी सतह के तापमान के अनुरूप होती है, इस तापमान का अध्ययन नई विधि के द्वारा करके खेती को और उन्नत किया जा सकता है |

शीतकालीन मानसून को उत्तर पूर्व मानसून के नाम से जाना जाता है |  यह मानसून भारत के दक्षिण प्रायद्वीप में वर्षा का मुख्य स्रोत है | इस मानसून के द्वारा वार्षिक वर्षा में लगभग 48 सहयोग रहता है |

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