स्त्री,भोजन और धन के लिए जाने क्या कहती है चाणक्य की नीति

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स्त्री भोजन और धन के लिए चाणक्य नीति के तेरहवें अध्याय के 19 वें श्लोक में बताया गया है, यदि  मनुष्य चाणक्य की नीति को अपनाते हुए चलेंगे, तो उन्हें जीवन में समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा |

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चाणक्य नीति के अनुसार स्त्री, भोजन और धन इन 3 मामलों में की गई गलती बड़ी समस्याए उत्पन्न कर देती है, जिससे कारण हम चाहते हुए भी अपने पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन को संभालनें में असमर्थ हो जाते है| आईये जानते है, इन तीनो मामले में चाणक्य नीतियां क्या कहती है?

चाणक्य नीति के अनुसार

चाणक्य नीति में यह बताया गया है, कि आम मनुष्य को स्त्रियों के मामलों में, भोजन के मामले में और पैसों के मामले में कैसे रहना चाहिए। चाणक्य के इस दोहे से आप मालूम कर सकते हैं, कि मनुष्य को किन चीजों से संतोष रखना है, और किन चीजों से संतोष नहीं रखना है

चाणक्य नीति का श्लोक

तीन ठौर संतोष कर, तिय भोजन धन माहिं|

दानन में अध्यन में, जप में कीजै नाहिं|

इन तीन चीजों से मनुष्य को संतुष्ट रहना चाहिए

स्त्री बारे में  

दुनिया के सभी मनुष्यों को अपनी पत्नी से ही संतुष्ट रहना चाहिए | उन्हें किसी दूसरी स्त्री की तरफ कभी भी गलत नजरों से नहीं देखना चाहिए और न ही किसी दूसरी औरत के पीछे भागना चाहिए क्योंकि, इसमें दोनों लोगों के मध्य स्थापित सामंजस्य टूट जाता है, जिसके पश्चात रिश्ता टूटनें के अतिरिक्त और कोई मार्ग शेष नहीं रहता |

भोजन के बारे में

चाणक्य ने बताया है, कि यदि मनुष्य का पेट ख़राब है, तो उसे कुछ समय के लिए भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि, उस समय मनुष्य के शरीर में भोजन विष के बराबर होता है, उस समय यदि हम थोड़ा सा पानी का सेवन करते है, तो वह हमारे शरीर में अमृत का काम करता है | सभी लोग खाना खाने के बाद पानी का सेवन जरुर करते हैं लेकिन, चाणक्य की नीति के मुताबिक, उस समय पिया गया पानी शरीर में विष की तरह हानि पहुंचता हैं | इसलिए भोजन भी सोच समझ कर ग्रहण करना चाहिए |

धन के बारें में

चाणक्य ने बताया है कि अधिकतर लोग सिर्फ धन अर्जित करनें के बारें में सोचते रहते है|
चाणक्य बताते हैं कि अधिकतर वे लोग ऐसा करते हैं जिनके पास पैसा अधिक रहता है | वहीं उच्च बौध्दिक स्तर वाले लोग ज्ञान और सम्मान प्राप्त करनें की कोशिश करते हैं | चाणक्य की नीति के अनुसार , अधिक धन का लोभ नहीं करना चाहिए |

संतोष नहीं करना चाहिए

आचार्य चाणक्य बताते हैं, कि विद्या अध्ययन, तप और दान करनें में कभी संतोष नहीं करना चाहिए। ये तीन काम दिल खोलकर करने चाहिए।

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