Home Religion & Spiritual Mahavir Jayanti 2019: भगवान महावीर स्वामी के बनाए गए ये पांच महाव्रत

Mahavir Jayanti 2019: भगवान महावीर स्वामी के बनाए गए ये पांच महाव्रत

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जैन धर्म के प्रमुख पर्वों में से महावीर जयंती सबसे प्रमुख पर्व है | इस बार महावीर जयंती 17 अप्रैल को धूमधाम से मनाई जा रही है | 17 अप्रैल को जयंती के अवसर पर मंदिरों में भगवान की पूजा, प्रभातफेरी और रथयात्रा का आयोजन किया जाता है | महावीर जी आत्म जागरण के संदेश के द्वारा जीवन के सार पर प्रकाश डाला है | उन्होंने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि मानव को आत्म कल्याण के लिए आत्म जागरण के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए |

भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया है | महावीर स्वामी जी ने जैन धर्म अपनाने वाले अपने अनुयायियों के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जीवन के लिए अनिवार्य बताया गया है |

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1.सत्य: दुनिया में सबसे शक्तिशाली

महावीर स्वामी जी ने कहा है कि जीवन में सत्य सर्वोत्तम है | मनुष्य को सत्य को प्रमुखता देनी चाहिए | बुद्धिमान मनुष्य सत्य की छाया में रहता है और यही कारण है कि वह हर बंधन से मुक्त अपना जीवन व्यतीत करता है |

2.अहिंसा: अहिंसा परमो धर्म:

अहिंसा का अर्थ है किसी के साथ हिंसा न करना अथार्त दूसरों के प्रति हिंसा के भाव से मुक्त होना | अहिंसा को समझाते हुए भगवान महावीर ने कहा कि अहिंसा परमो धर्म: | इसमें यह समझाया गया है कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जाने- अनजाने में हमे किसी को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए | मानव के पास ही किसी दूसरे को कष्ट से बचाने की शक्ति है | मनुष्य को अपनी इस शक्ति का प्रयोग अहिंसा के पथ पर चल कर करना चाहिए |

3.अस्तेय: लालच करना महापाप

महावीर स्वामी जी ने कहा कि दूसरों की चीजों को कभी नहीं चुराना चाहिए ऐसी इच्छा रखना या दूसरों की चीजों को देखकर लालच करना ही महापाप है |

4.ब्रह्मचर्य:

भगवान महावीर ने कहा कि ब्रह्मचर्य: का पालन करना सबसे कठिन है, इस संसार में जिसने भी इसका पालन किया है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है | उन्होंने कहा कि जब आपका अपने शरीर से ही मोह नहीं रहेगा, तो किसी दूसरे के शरीर से भोग की भावना स्वतः ही समाप्त हो जाएगी |

5.अपरिग्रह: (माया व मोह ही है दुख का कारण)

महावीर स्वामी जी ने बताया है कि सम्पूर्ण विश्व नश्वर है, इसमें माया व मोह ही दुख का कारण है | मनुष्य को माया के बंधंन से मुक्त होने की कोशिश करनी चाहिए | अपरिग्रह का अर्थ है ही कि संचय न करना |

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