हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक़, आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहलाती है। पुराणों के मुताबिक, इन 4 महीनों में भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। इसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु की योग निद्रा खुलती है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
इस बार यह एकादशी 12 जुलाई को पड़ रही है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुवात हो जाती है | 12 जुलाई से अगले 4 महीनों तक कोई भी मांगलिक कार्य संपन्न नहीं कराये जाएंगे| चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। चातुर्मास में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
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देवशयनी एकादशी का महत्व
1.यह एकादशी सौभाग्यदायिनी एकादशी भी कहलाती है। पद्म पुराण के मुताबिक़, इस दिन व्रत या उपवास रखने से जाने-अनजाने में किए गए पाप खत्म हो जाते हैं।
2.इस दिन जो भी भक्त विधि-विधान से पूजा करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक़, इस व्रत को करने से मनोकामना भी पूरी होती है।
3.शास्त्रों के मुताबिक़, देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो जाता है और चार महीने के लिए 16 संस्कार रुक जाते हैं।
देवशयनी एकादशी की कथा
1.भागवत महापुराण के मुताबिक़,आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर राक्षस मारा गया था, उस दिन से भगवान चार महीने तक क्षीर समुद्र में सोते हैं।
2.अन्य ग्रंथों के मुताबिक़, भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में पूरे स्वर्ग को ढक लिया। तब तीसरा राजा बलि ने अपने सिर पर रखवाया। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने राजा बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और उससे वरदान मांगने को कहा।
3.बलि ने वर मांगते हुए कहा कि,भगवान हमेशा मेरे महल में रहें। भगवान को बलि के बंधन में बंधा देखते हुए माता लक्ष्मी ने बलि को भाई बनाया और भगवान को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया।
4.माना जाता है कि, तब से भगवान विष्णु का अनुसरण करते हुए तीनो देव 4-4 महीने में पाताल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक करते हैं।
पूजा विधि
1.एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें और सुबह ही स्नान आदि से निवृत हो लें, इसके बाद घर में गंगाजल से छिड़काव करें।
2.घर के पूजा स्थल या किसी पवित्र स्थान पर भगवान श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या कांसे की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद षोडशोपचार से उनकी पूजा करनी चाहिए और भगवान विष्णु को पीतांबर से सजाना चाहिए|
3.इसके पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए और आरती करने के बाद प्रसाद वितरण करना चाहिए |
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