पुलिस हमेशा से प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल करती आ रही है । इतिहासकार बताते हैं कि, “आंसू गैस का पहला कनस्तर अगस्त 1914 में यानी करीब 105 साल पहले फेंका गया था। यह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान की बात है। तब मकसद था, दुश्मन सेना को पीछे धकेलना|” आजकल पुलिस भीड़ प्रदर्शनकारियों पर इसका इस्तेमाल कर रही है। आप भी जानिए इसका असर क्या होता है ?
इसे भी पढ़े: ग्रीन पटाखे क्या होते हैं, यहाँ से जानें पूरी जानकारी
जाने आंसू गैस के बारे में
आंसू गैस में ओ-क्लोरोबेंजिलिडीन मैलोनीट्राइल (सीएस), डिबेंजोक्साजेपाइन (सीआर) और फेनासिल क्लोराइड (सीएन) पाए जाते हैं। इन कैमिकल्स को दंगा नियंत्रक एजेंट्स (आरसीए) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, क्योंकि इनका असर आंखों में कॉर्निया की नसों पर पड़ता है, जिससे आंसू निकलते हैं। इसी गुण के कारण इसे आंसू गैस कहा जाता है।
आंसू गैस का शरीर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह 20 सेकंड में असर दिखाना शुरू कर देता है, और 15 मिनट तक इन्सान इससे तड़पता रहता है। दुनिया में सबसे ज्यादा सीएस आंसू गैस का प्रयोग किया जाता है|
यूनाइटेड स्टेट सेंटर फॉर कम्युनिकेबल डिजीज के मुताबिक, सीएस आंसू गैस के कारण शरीर में दर्द होता है| इससे आंखें जलती हैं और आंसू आते हैं| कंजक्टिवाइटिस होता है, एरिथेमा यानी त्वचा और खासतौर पर पलकें लाल हो जाती हैं| इसके साथ ही गले में जलन होती है, बहुत ज्यादा खांसी आती है|
आंसू गैस का खतरनाक असर
2011 के अरब के विरोध प्रदर्शनों के बाद ड्यूक यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर स्वेनएरिक जोर्ड ने लिखा था कि, आंसू गैस की शिकार गर्भवती महिलाओं में गर्भपात के मामले बढ़ रहे हैं। संभवतया आंसू गैस में शामिल केमिकल के असर और तनाव के कारण ऐसा हो रहा है।”
इसे भी पढ़े: विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस आज, जानिए कितने लोग मानसिक विकार से है ग्रस्त