घजब देश की सरकार के द्वारा किये गए व्यय उसकी आय से अधिक होते है, तो देश की अर्थव्यवस्था घाटे में होती है | इस घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा जो व्यवस्था अपनाई जाती है, उसे घाटे की वित्त व्यवस्था या हीनार्थ प्रबंधन के नाम से जाना जाता है | इस घाटे को तीन प्रकार से पूरा किया जा सकता है-
1.नए नोट छापकर
2.विदेशी ऋण लेकर
3.आंतरिक ऋण लेकर
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हम लोग यह विचार करते है, कि आय हमेशा व्ययों से कम क्यों रह जाती है ? यह नियम केवल हम लोगों पर ही नहीं बल्कि अरबों डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देशों पर भी लागू होता है| विश्व में लगभग प्रत्येक देश घाटे की वित्त व्यवस्था का सहारा लेता है| इस प्रकार से देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ती में वृद्धि हो जाती है, मुद्रा अधिक होने पर वस्तुओं का मूल्य अधिक हो जाता है| इसी कारण घाटे की अर्थव्यवस्था को “मुद्रा पूर्ती विचार” के नाम से भी जाना जाता है |
घाटे की वित्त व्यवस्था का उद्देश्य
1.विकास गति में निरन्तता बनी रहे एवं धन की कमी को पूरा किया जा सके
2.आर्थिक मंदी के समय बेरोजगारी से निपटने के लिए देश में अतिरिक्त निवेश को बढ़ावा दिया जा सकता है
3.युद्धकालीन व्यय की पूर्ती और आकस्मिक वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए धन का प्रबंध करना
4.देश के विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गति देने के लिए निवेश के लिए धन की व्यवस्था की जा सकती है
5.देश की जनता को यह भरोसा दिलाना की उनके द्वारा दिया गया टैक्स सही जगह पर लगाया जा रहा है
घाटे की वित्त व्यवस्था के प्रभाव
1.देश में मुद्रा अधिक होने से देश में महंगाई अधिक बढ़ जाती है
2.स्फितिक दबाव होने से औसत उपभोग स्तर में कमी हो जाती है
3.देश के सभी वर्गों के बीच होने वाली आय में अधिक अंतर होना
4.अमीर व्यक्ति और अधिक अमीर हो जाता है, और गरीब व्यक्ति और अधिक गरीब होता चला जाता है
5.बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और घाटे की वित्त व्यवस्था मुद्रास्फीति की तरफ बढ़ती है
निवेश पर प्रभाव
घाटे की वित्त व्यवस्था के द्वारा देश में होने वाले निवेश पर विपरीत प्रभाव डालती है | घाटे की वित्त व्यवस्था के कारण देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति बढ़ जाती है | मुद्रास्फीति बढ़ने पर ट्रेड यूनियन, कर्मचारी अधिक वेतन की मांग करते हैं, अगर उनकी मांगों को मान लिया जाता है तो वस्तुओं का उत्पादन करने में लगने वाली कीमत बढ़ जाती है, जिससे निवेशकों को लाभ कम होने लगता है और यदि निवेशक इस बढ़ी हुई कीमत को वस्तुओं में जोड़ते है, तो वस्तु महंगी होने कारण बाजार में मांग कम हो जाती है | इस प्रकार से निवेशक को घाटा उठाना पड़ता है |
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