दुनिया में अभी बहुत से लोग ऐसे हैं, जो अपनी जिम्मेदारियों को उठाने से दूर भागते हैं| इसी कड़ी में स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र छिपे हुए हैं। यदि आप इनके सूत्रों बताई गई इन बातों को अपने जीवन में अपनाते हुए आगे बढ़ते हैं, तो हम कई काफी परेशानियों से अपने को बच सकते हैं। तो जानिए यहाँ ऐसा ही एक प्रसंग…
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जानिए ऐसा ही एक प्रसंग…
रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य का नाम मणि था। मणि की शादी हो चुकी थी और वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से परेशान थे। मणि ने एक बार परमहंस से कहा, कि गुरुदेव मैं तन-मन से भगवान की भक्ति में डूब जाना चाहता हूं। परमहंस जी बोले, कि तुम अभी अपने घर-परिवार की सेवा करके भगवान की ही सेवा कर रहे हो। तुम धन का संचय अपने लिए नहीं, बल्कि परिवार के लिए कर रहे हो, यह भी भगवान की सेवा है।
शिष्य ने कहा, कि गुरुदेव मेरी इच्छा है कि कोई मेरे परिवार की जिम्मेदारी ले ले, ताकि मैं सभी चिंताओं से मुक्त होकर ईश्वर की भक्ति करना चाहता हूं। परमहंस ने शिष्य को समझाया ये अच्छी बात है, कि तुम भगवान की भक्ति करना चाहते हो, लेकिन तुम अभी अपने पारिवारिक कर्तव्यों को पूरा करो। साथ ही, भक्ति भी करो। जैसे-जैसे तुम्हारे कर्तव्य पूरे होते जाएंगे, वैसे-वैसे तुम्हार मन भी भक्ति की राह पर आगे बढ़ता जाएगा।
कथा की सीख
इस छोटी सी कथा का मतलब है, कि लोग अक्सर परिवार की जिम्मेदारियों से तंग आकर उन जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं और वहीं अधिकतर लोग अपने घर-परिवार को छोड़कर भक्ति की राह पर चलना चाहते हैं, लेकिन जीवन में ऐसा कभी भी नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को पहले अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए, ये भी ईश्वर की ही सेवा करने के बराबर होता है। परिवार को बेसहारा छोड़कर की गई भक्ति कभी भी सफल नहीं होती है|
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