पैरिस में फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स की बैठक पर पूरी दुनिया की नजर है, दूसरी तरफ पाकिस्तान की टेंशन बढ़ती ही जा रही है। इस बैठक में आतंकी फंडिंग और मनी लांड्रिंग मामले में पाकिस्तान के भाग्य का फैसला होना है। यदि यह पाया जाता है कि पाकिस्तान ने आतंकी फंडिंग और मनी लांड्रिंग को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए हैं, तो उसे ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है। बता दें, बता दें कि एफएटीएफ ने उसे जून 2018 में ग्रे लिस्ट में डाल दिया था।
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पाकिस्तान के ब्लैकलिस्ट होने पर उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से लोन नहीं मिलेगा। मनी लांड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ ने पिछले साल जून में पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डाला था। संस्था ने 27 बिंदुओं पर काम करने के लिए पाकिस्तान को अक्टूबर, 2019 तक का समय दिया था। एफएटीएफ की इकाई एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) ने 23 अगस्त को कहा था, कि पाकिस्तान आतंकी फंडिंग को रोकने में विफल साबित हुआ है। उसने यह भी कहा था, कि पाकिस्तान 40 मानकों में से 32 मानकों पर पूरी तरह विफल रहा है।
इस समय चीन एफएटीएफ का अध्यक्ष है। उसमें मलेशिया और तुर्की और सऊदी अरब भी शामिल है। ये सभी देश पाकिस्तान के मित्र हैं। यदि तीन देश पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने के विरोध में वोटिंग करते हैं, तो उसे ब्लैकलिस्ट नहीं किया जा सकता है। जबकि पूरी संभावना है कि चीन, मलेशिया और तुर्की पाकिस्तान के पक्ष में ही मतदान करेंगे। हालांकि, यदि पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में भी बना रहता है, तो भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।