किसी भी व्यक्ति को सजा मिलने का कारण उसको सुधारना होता है, यदि उसके अंदर यह सुधार आ जाता है, तो उसको सामान्य जीवन जीने का एक मौका अवश्य मिलना चाहिए | ऐसी ही एक घटना प्रकाश में आयी है, जिसमे एक दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया है |
दोषी ने अपने किये गए अपराध के लिए एक कविता के माध्यम से पश्चाताप किया है | सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके. सीकरी, एसए. नजीर और एमआर. शाह की पीठ ने उसकी इस कविता को पढ़ा और दोषी दयानेश्वर की मौत की सजा को माफ कर दिया | कविता में दोषी ने अपने जुर्म पर गहरा पश्चाताप व्यक्त किया और अपनी गलती का अहसास किया था |
न्याय खंड पीठ ने कहा कि जेल में लिखी कविताओं को देखने से लगता है कि उसे अपनी गलती का अहसास है, हमे लगता है, कि वह अब सुधरने के मार्ग पर है, इसलिए उसको सुधरने का मौका अवश्य देना चाहिए हमे लगता है कि वह अब समाज के लिए हानिकारक नहीं है और वह समाज की व्यवस्थाओं में सहयोग कर सकता है, इसलिए हमारी राय में इस मामले में मौत की सजा वांछित नहीं है | पीठ ने कहा कि उसका अपराध गंभीर और क्रूर है, लेकिन इसके बावजूद इसे फांसी की सजा नहीं देनी चाहिए |
दोषी दयानेश्वर को एक नाबालिग के अपहरण और हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 हत्या, अपहरण 364 और धारा 201 सबूत नष्ट करने के आरोप में दंडित किया गया था | दोषी पिछले 11 वर्ष से जेल में था। उसने जेल में रहते हुए बीए भी किया है और गांधी फाउंडेशन द्वारा चलाए जा रहे गांधी विचार धारा में प्रशिक्षण भी ले लिया है |