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Ram Prasad Bismil Jayanti Special : पं. राम प्रसाद बिस्मिल का देश के प्रति योगदान, ऐसे लड़े आजादी की लड़ाई

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1987

आज क्रांतिकारी, लेखक, इतिहासकार, साहित्यकार रामप्रसाद बिस्मिल का 122 वां जन्मदिवस है| रामप्रसाद बिस्मिल ने मात्र 11 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था| उनका जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर में हुआ था| राम प्रसाद बिस्मिल बचपन में आर्यसमाज से प्रेरित थे, और उसके बाद वे देश की आजादी के लिए काम करने लगे|

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राम प्रसाद बिस्मिल मातृवेदी संस्था से भी जुड़े थे| इस संस्था में रहते हुए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए काफी हथियार एकत्रित किया, लेकिन अंग्रेजी सेना को इसकी जानकारी मिलनें पर अंग्रेजों ने हमला बोलकर काफी हथियार बरामद कर लिए| इस घटना को ही मैनपुरी षड़यंत्र के नाम से भी जाना जाता है| काकोरी कांड को अंजाम देने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाया गया|

अंग्रेजों ने राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को काकोरी कांड में शामिल होने की वजह से फांसी के फंदे पर लटका दिया था| बिस्मिल जी को कविताओं और शायरी लिखने का काफी रूचि थी | फांसी के तख्त पर बिस्मिल ने ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ के कुछ शेर पढ़े| ये शेर पटना के अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी की रचना थी, पर जनमानस में इस रचना की पहचान राम प्रसाद बिस्मिल को लेकर अधिक हुई|

बिस्मिल की अंतिम रचना

मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या.

दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !

मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल,

उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !

ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में

फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते

यूं सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या

आख़िरी शब दीद के काबिल थी ‘बिस्मिल’ की तड़प

सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या!

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