Rath Yatra 2019: गुरुवार 04 जुलाई को ओडिशा की धार्मिक नगरी पुरी में विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन होने जा रहा है। वहीं हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक़, रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है। यह रथ यात्रा 9 दिनों तक लगातार चलती रहेगी| इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडीचा मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे |
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वहां पहुंचकर वो सात दिनों तक विश्राम करेंगे इसके बाद फिर वे वापस अपने धाम जगन्नाथ पुरी वापस आ जाएंगे। बताया जाता है कि यह मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। वहीं 9 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में तीन विशाल रथ ले जाए जाते हैं, जिसे भगवान के भक्त खींचते हुए ले जाते हैं। इसलिए आप भी जान लीजिये इस रथ यात्रा से जुड़ी कई प्रमुख बाते|
इस रथ यात्रा की प्रमुख बातें-
1.पूरी दुनिया को रचने वाले भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में पुरी में अवतार लिया था और इसके साथ ही सबर जनजाति के इष्ट देवता होने के कारण भगवान जगन्नाथ का स्वरूप बहुत ही अलग है।
2.इस रथ यात्रा के संदर्भ में कहा जाता है कि, पुरी के लोग भगवान जगन्नाथ को अपना राजा और स्वयं को प्रजा मानते हैं। इस कारण से भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर वर्ष में एक बार अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए अपने धाम से निकलते हैं। उनके सुख-दुख जानते हैं।”
3.इस रथ यात्रा के लिए तीन प्रमुख रथ तैयार किये जाते हैं, जिस पर सबसे पहले बलराम, दूसरे पर सुभद्रा और तीसरे पर भगवान जगन्नाथ खुद सवार होते हैं। इन रथों की पहचान रंग और ऊंचाई से की जाती है|
4.भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष होता है, जिसमें 18 पहिए लगे होते हैं। इसे ‘गरुड़ध्वज’ भी कहा जाता है। इस रथ पर लगे ध्वज को त्रिलोक्यमोहिनी कहते है। यह रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है, जो लाल और पीले रंग के कपड़े से ढंका रहता है। भगवान जगन्नाथ के सारथी का नाम मातली होता है।
5.बलराम के रथ का नाम तालध्वज होता है, जो 45 फीट ऊंचा बना हुआ होता है, जिसमें 14 पहिए लगे हुए होते हैं। यह लाल और हरे कपड़े से ढंका हुआ होता है। बलराम के सारथी का नाम सान्यकी होता है।
6.वहीं सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन होता है, जो 44.6 फीट ऊंचा रहता है, और उसमें 12 पहिए लगे रहते हैं। यह लाल और काले रंग के कपड़े से ढंका रहता है। देवी सुभद्रा के सारथी का नाम अर्जुन होता है।
7.ये तीनों रथ नीम की लकड़ियों से बने हुए होते हैं, इनको दारु कहा जाता है। रथ बनाने में किसी कील या किसी धातु का इस्तेमाल नहीं होता है। नीम की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी से शुरू किया जाता है और अक्षय तृतीया से रथ निर्माण शुरू किया जाता है।
8.रथ यात्रा के दिन पहले तीनों मूर्तियों को श्रीमंदिर से बाहर लाया जाता है यह बाहर लाने वाली प्रक्रिया पहंडी बिजे कहलाती है। इसके बाद विधि विधान से तीनों रथों पर सवार होते हैं। इसके बाद भक्त इन रथों को मोटे-मोटे रस्सों से खींचते हुए ले जाते हैं|
9.श्री मंदिर से शुरू हुई रथ यात्रा पहले गुंडीचा मंदिर जाती है, यह भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर होता है। भगवान यहां पर 7 दिन तक विश्राम करते हैं। वहां इन तीनों का खूब आदर-सत्कार किया जाता है। उनको कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवान का भोग लगता है, फिर वे भाई-बहन के साथ अपने धाम श्रीमंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहते है।
10.यह रथ यात्रा श्रीमंदिर से प्रारंभ होकर गुंडीचा मंदिर तक जाती है, इसलिए इसे गुंडीचा महोत्सव भी कहते है।
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