सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय, अब RTI के दायरे में आएगा मुख्य न्यायाधीश का ऑफिस

0
396

सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के बाद अब से देश में नया कानून लागू हो गया जिसके बाद से अब मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी सूचना के अधिकार (RTI) के दायरे में आएगा | यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ द्वारा दिया गया है | इसी वर्ष चार अप्रैल को कोर्ट की सुनवाई के बाद के इस मामले में निंर्णय सुरक्षित रख लिया गया था |

Advertisement

जानकारी देते हुए बता दें कि चीफ जस्टिस के कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाने को लेकर पहली याचिका वर्ष 2010 में दायर हुई थी | फिर इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि “CJI एक ऐसा पद है जो पब्लिक अथॉरिटी के अंदर आता है | राइट टू इनफार्मेशन और टाइट टू प्राइवेसी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं|”

ये भी पढ़े: IBPS SO Notification 2020: ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन

अब CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 2010 के फैसले को सही बताते हुए, इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल और शीर्ष अदालत के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी की गई अपील को खारिज कर दिया है |

इसके अलावा संविधान पीठ ने यह भी आगाह किया कि RTI कानून का प्रयोग निगरानी रखने के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता है तथा इसमें पारदर्शिता के मुद्दे पर विचार करते समय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखना चाहिए | इस फैसले को सुनाने वाली बेंच में न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल थे |

संविधान पीठ ने कहा कि “कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए की गई सिफारिश में सिर्फ न्यायाधीशों के नामों की जानकारी दी जा सकती है, लेकिन इसके कारणों की नहीं | प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने का एक ही निर्णय रहा, लेकिन न्यायमूर्ति एनवी रमण और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ ने अलग फैसला लिखा | जिसमे न्यायालय ने कहा कि “निजता का अधिकार एक महत्वपूर्ण पहलू है और प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय से जानकारी देने के बारे में निर्णय लेते समय इसमें और पारदर्शिता के बीच संतुलन कायम करना होगा |” न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि “न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता को साथ-साथ चलना है |”

न्यायमूर्ति रमण ने न्यायमूर्ति खन्ना से सहमति व्यक्त की और कहा कि “निजता के अधिकार और पारदर्शिता के अधिकार तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बीच संतुलन के फॉर्मूले को उल्लंघन से संरक्षण प्रदान करना चाहिए|” दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 जनवरी, 2010 को कहा था कि “प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय RTI के दायरे में आता है और न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है|” यह फैसला 88 पेज में था |

ये भी पढ़ें: Current Affairs 13 November 2019 in Hindi

Advertisement