मुहर्रम इस्लामी महीना है, और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है| इस्लाम के मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को कर्बला की जंग में शहीद हुए पैंगबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की याद में देशभर में ताजियां निकालकर मातम मनाया जाता है| अनेक स्थानों पर ताजिया के दौरान पटाबाजी भी की जाती है| ताजिया निकालने के बाद उसे दफनाया जाता है| इस दौरान मातम के साथ-साथ उनकी शहादत को भी याद किया जाता है, कई क्षेत्रों में दूसरे समुदाय के लोग भी ताजिया में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं|
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मुहर्रम पर ताजिया निकालनें का कारण
ताजिया बांस की लकड़ी से तैयार किया जाता हैं, जिस पर रंग बिरंगे कागज और पॉलिथीन के चांद सतारे और दूसरी तरह के सजावट के समानों से सजाया जाता है| भारत के कुछ शहरों में तो ताजिया बनाने के लिए अनाज और गेहूं का भी प्रयोग किया जाता है|
ताजिया मस्जिद के मकबरे की आकार की तरह बनाया जाता है, क्योंकि इसे इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है| मुहर्रम पर मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया के आगे बैठकर मातम करते हुए मर्सिए पढ़ते हैं, ग्यारहवें दिन जलूस के साथ ताजिये को दफनाया जाता है|
मुहर्रम पर मातम
मुहर्रम की 10वीं तारीख अशुरा के दिन कर्बला की जंग में बादशाह यजीद से मुकाबला करते-करते हजरत इमाम हुसैन शहीद हो गए थे| इस दौरान उनका परिवार और कुछ लोग शामिल थे| मदीना से इराक जाते हुए इमाम हुसैन के काफिले पर कर्बला में यजीद ने फौज का पहरा लगा दिया, जलती गर्मी के बावजूद फौज ने किसी को भी खाना तो दूर की बात पानी तक नहीं दिया| यह बात हद से गुजर जाने के बाद जंग का ऐलान किया गया, भूख-प्यास की हालत में इमाम हुसैन ने जंग लड़ी और इस्लाम के लिए शहीद हो गए, इसलिए उनकी शहादत की याद में ही मुहर्रम का त्योहार मनाया जाता है|
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