28 मार्च को है शीतला अष्टमी व्रत, देवी पूजन के साथ इस दिन किया जाता है बासी भोजन

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इस बार शीतला अष्टमी का व्रत 28 मार्च गुरूवार को देवी पूजन के साथ किया जाएगा| इस दिन पूजन में शीतला माता की आराधना की जाती है| यह अष्टमी होली के एक सप्ताह बाद आती है। शीतला अष्टमी व्रत की पूजा का विधान बिलकुल ही अलग है, क्योंकि शीतलाष्टमी के एक दिन पहले ही भोग के लिए बासी भोजन तैयार कर लिया जाता है, जिसे बसौड़ा भी कहा जाता है।

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होली वाली अष्टमी के दिन बासी भोजन ही देवी को चढ़ता है, और यही प्रसाद के रूप में खाया भी जाता है। पूरे उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्यौहार, बसौड़ा के नाम से प्रसिद्द है।

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शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी के दिन पूजा करने से शीतला माता की कृपा हमेशा बनी रहती है। पंडित दीपक पांडे के मुताबिक, 28 तारीख को अष्‍टमी प्रातः काल से ही प्रारम्भ हो जायेगी और पूजन का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से लेकर दोपहर 1.29 तक रहेगा। इस दिन बसौड़ा मतलब एक दिन पहले बनाया गया भोजन देवी माता को चढ़ाया और खाया जायेगा। ऐसी मान्यता है, कि इस प्रसाद को खाने से ज्वर, पीत ज्वर, फोड़े और नेत्र जनित सभी रोग दूर हो जाते हैं।  

पौराणिक मान्यतानुसार शीतला माता चतुर्भुजी हैं, अर्थात शीतला माता के चार हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में झाड़ू, दूसरे में कलश है,तीसरा हाथ वर मुद्रा में और चौथा अभय मुद्रा में रहता है। वे पीला और हरा वस्‍त्र धारण करती हैं, और शीतला माता की सवारी गधा है। उनके हाथ की झाड़ू सफाई का और कलश जल का प्रतीक कहलाता है।  झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है, और कलश में धन कुबेर का वास रहता है। माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं, अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और भोजन एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है। ये एकमात्र ऐसा व्रत है, जिसमें बासी भोजन चढ़ाया व खाया जाता है।

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