भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और इसके पीछे की कहानी – पढ़ें यहाँ

दुनिया में सभी लोग किसी न किसी देवी- देवता की पूजा अवश्य करतें हैं, उनमें कुछ लोग भवान विष्णु की भी पूजा करते हैं|  पुराणों में भगवान विष्णु को पूरे संसार का पालनहार कहा गया है।

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भगवान विष्णु दुनिया के सारे क्लेशों को दूर करने वाले हैं| विष्णु जी के चार हाथ हैं, और वो अपने चारों हाथों में अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए हैं, उन्होंने अपने नीचे वाले बाएं हाथ में पद्म (कमल), वहीं दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी) ,ऊपर वाले बाएं हाथ में शंख और वहीं दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करते हैं,परन्तु आप इस बार में जरुरु जानना चाहेंगे, कि ये सुदर्शन चक्र उनके हाथ में कैसे आया और इसके पीछे की कहानी क्या है?

माना जाता है, कि भगवान विष्णु का संपूर्ण स्वरूप ही ज्ञानात्मक है। विष्णु जी का पहला हाथ ज्ञान की खोज को दर्शाता है, जबकि दूसरा पारिवारिक जीवन को, तीसरा वन में वापसी और चौथा संन्यास को, इसके अतिरिक्त उनके कानों के दो कुंडल  ज्ञान और अज्ञान, सुख और दुख को दर्शातें हैं |

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वहीं भगवान विष्णु के मुकुट पर लगा मोर पंख, उनके कृष्ण अवतार को दर्शाता है और उनके छाती पर बना श्रीवस्ता उनका लक्ष्मी जी के प्रति प्रेम को दर्शाता है। वहीं, उनका सुदर्शन चक्र सात्विक अहंकार को दर्शाता है। 

पुराणों के मुताबिक,विष्णु जी के 10 अवतार मत्स्यावतार, वराहावतार,कूर्मावतार, , परशुरामावतार, नरसिंहावतार, वामनावताररामावतार, बुद्धावतार, कृष्णावतार और कल्कि अवतार जो भगवान् विष्णु ने अभी लिया नहीं है| ऐसा माना जाता है, विष्णु भगवान यह तब लेंगे जब कलयुग का अंत नजदीक आ जाएगा और पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे और अधर्म का विनाश कर पुन: धर्म की स्थापना करेंगे।

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भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति  

 पुराणों से प्राप्त ज्ञान के मुताबिक, एक बार भगवान विष्णु काशी में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को शिवजी का पूजन करने के लिए आए थे, वहीं पर विष्णु जी ने मणिकार्णिका घाट पर स्नान किया और1000 स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। अभिषेक पूरा होने के जब भगवान विष्णु पूजा करनी प्रारम्भ कर दी तो इसके बाद शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेनी चाही जिसके लिए शिवजी नेउनके एक कमल के फूल को कम कर दिया।

भगवान विष्णु को तो अपने संकल्प की पूर्ति तो करनी ही थी, इसके लिए सोचा कि मेरी आंखें ही कमल के समान मानी जाती हैं, तभी तो मुझे कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष कहा जाता है, इसलिए मैं एक कमल के फूल की जगह पर अपनी आंख ही चढ़ा देता हूं। ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आंख भगवान शिव को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही शिवजी प्रकट हो गये और बोले – हे विष्णु। आपके समान संसार में मेरी भक्ति कोई और नहीं कर सकता है|

प्रसन्न होकर भगवान शिव ने विष्णु जी से कहा कि, आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैंकुठ चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध हो जाएगी। इस दिन जो भी पुरुष व्रत के साथ  पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। इसके बाद शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान करते हुए कहा कि यह चक्र राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं रहेगा|

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