चुनाव आयोग से ‘मेंटल’ और ‘पागल’ शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग


लोकसभा चुनाव की तिथियां नजदीक आ रही है, इस समय सभी राजनैतिक दलों के द्वारा चुनाव प्रचार किया जा रहा है, इस चुनाव प्रचार में विरोधी नेताओं पर तल्ख़ टिप्पणी की जा रही है, लोग एक दूसरे के लिए ‘मेंटल’ और ‘पागल’ जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे है, जोकि लोकतंत्र की गरिमा को नुकसान पंहुचा रहे है|

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इन सब पर रोक लगाने के लिए भारतीय मनोचिकित्सक सोसायटी (आईपीएस) ने भारतीय चुनाव आयोग को एक पत्र भेजा है, इसमें चुनाव आयोग से मांग की गयी है, ऐसे राजनेताओं के विरुद्ध कार्यवाही करे और उन्हें निर्देश दे की चुनाव प्रचार में ऐसे शब्दों का प्रयोग न करे| आईपीएस ने ऐसे शब्दों के इस्तेमाल को ‘अपमानजनक’ और ‘अमानवीय’ बताया है|

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भारतीय चुनाव आयोग को लिखे पत्र में आईपीएस के चेयरपर्सन डॉ. बीएन रवीश और को-चेयरपर्सन डॉ. सुरेश बाडा के द्वारा कहा गया है कि, “अपने विरोधियों के लिए राजनेताओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला ‘मेंटल’ या ‘पागल’ शब्द मानसिक विकारों से ग्रसित लोगों के लिए भेदभावपूर्ण, अमानवीय और अपमानजनक है।” आईपीएस ने कहा कि “ऐसा देखा गया है कि राजनीति या सामाजिक दायित्वों से जुड़े लोग ‘मानसिक अस्थिर’, ‘पागल’, ‘मानसिक अस्वस्थ’ या ‘मेंटल हॉस्पिटल को भेजना है’ जैसे टर्म्स का इस्तेमाल करते हैं”|

भारत ने ‘राइट टू पर्सन विद डिसएबिलिटी’ पर हस्ताक्षर किया हुआ है

आईपीएस ने पत्र में लिखा कि “नेता के तौर पर ऐसे लोगों के पास एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। उनके बयान सोशल मीडिया सहित प्रिंट और विजुअल मीडिया द्वारा कवर किए जाते हैं। संस्था ने चुनाव आयोग से राजनेताओं को इस सम्बन्ध में सावधानी बरतने का निर्देश जारी करने को कहा है”|

आईपीएस संस्था ने चुनाव आयोग से मांग की है कि इस मामले को कोड ऑफ कंडक्ट (आचार संहिता) के अंतर्गत भी लाया जाए। इससे पूर्व भारत ने युनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन में ‘राइट टू पर्सन विद डिसएबिलिटी’ पर हस्ताक्षर किया हुआ है और भारत में इसे लागू करने के लिए ‘मेंटल हेल्थ केयर ऐक्ट, 2017’ भी पारित किया गया है|

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