आजादी का ये महानायक बन गया था अंग्रेजों के डर की सबसे बड़ी वजह, कांप उठे थे अंग्रेज

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यह कहानी है 162 साल पहले की जब अंग्रेज अधिकारी इस महापुरुष से हद से ज्यादा डरते थे | बता दें कि भारत की आजादी का सपना देखने वालों में से एक महान नायक थे | जिसकी वजह से देश के इस महानायक को निर्धारित तिथि से 10 दिन पहले ही फांसी की सजा दे दी गई थी | जब यह महापुरुष ज़िंदा था तभी इन्होंने जंग-ए-आजादी के साथ बिगुल फूंका, और उनकी शहादत ने देश के हर एक कोने में क्रांति का रूप ले लिया। इस महानायक को भारत के सभी लोग इतना अधिक सम्मान देते और मानते थे कि उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के जल्लादों ने भी फांसी पर लटकाने से इन्कार कर दिया था। आप भी जान लीजिये इस महानायक के बारे में कि अंग्रेज किस वजह से इनसे कांपते थे | 

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आजादी के इस महानायक का नाम मंगल पांडे था। इनका जन्म 19 जुलाई 1827 को संयुक्त प्रांत के बलिया जिले (उत्तर प्रदेश) के नगवां नाम के गांव में हुआ था और इनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय तथा माता का नाम अभय रानी था। मंगल पांडे का बचपन से ही सपना था कि सेना में भर्ती हो जायें | इसके बाद जब वो 22 साल के हुए तो वह ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़कर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो गए। अंग्रेजी सेना में भर्ती होने के बाद उन्हें सबसे पहले अकबरपुर में नियुक्ति मिली थी |

मंगल पांडे का अंग्रेजी सेना में अधिक दिन काम करने में मन नहीं लगा क्योंकि वहां पर भारतीय नागरिकों और सैनिकों पर अंग्रेज अधिकारी अन्याय और ज्यादतियां कर  रहें थे, जो मंगल पाण्डेय से देखा नहीं गया| इसके बाद जब अंग्रेजी सेना द्वारा ‘एनफील्ड पी.53’ राइफलइसी लॉच की जाने से मंगल पांडे की दिशा ही बदल गई थी क्योंकी इस राइफल में जानवरों की चर्बी से बने एक खास तरह के कारतूस का इस्तेमाल किया जाता था, इस कारतूस को राइफल में डालने से पहले मुंह से छीलना पड़ता था।

अंग्रेज इस कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग करते थे। जैसे ही मंगल पांडे के सामने इस बात खुलासा हुआ तो मंगल ने अंग्रेज अधिकारियों के सामने इस बात को लेकर आपत्ति जताई, लेकिन अंग्रेजों ने उनकी एक न सुनी | इसके बाद मंगल पांडे ने स्वयं एक कदम उठाते हुए अपने सभी साथी सैनिकों को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए तैयार कर लिया। उन्हें इस बात की जानकारी दी कि अंग्रेज अधिकारी कैसे कारतूस में गाय और सूअर के चर्बी का प्रयोग करके  भारतीयों की भावना के साथ खिलवाड़ करने में लगे हुए हैं। सभी सैनिकों को भी यह बात रास न आयी और वो भी मंगल पाण्डेय के साथ शामिल हो गये | 

इसके बाद जब 29 मार्च 1857 में वही कारतूस पैदल सेना को दिए जाने लगे, तो मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से साफ मना कर दिया। इस बात से नाराज अंग्रेजों ने उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म दे दिया गया, जिसके बाद मंगल पाण्डेय ने अंग्रेज के उस आदेश को भी मानने से मना कर दिया | फिर जब अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन उनकी ओर राइफल छीनने के लिए आगे बढे तो मंगल ने उन पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद उनके साथियों में उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद भी उनका साथ देने के लिए आगे आ गए।

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इस आक्रमण में मंगल पांडे ने अंग्रेज सैन्य अधिकारी ह्यूसन को मौत की नींद सुला दिया और इसके बाद एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मौत के घाट उतार दिया | लेकिन मंगल पाण्डे और उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड़ लिया| परन्तु तब तक इस घटना ने इतना विद्रोह सेना के बाहर आम भारतीयों में भी आजादी का अंकुर बो चुकी थी । इसलिए मंगल पाण्डे द्वारा की गई इस घटना को ‘1857 का गदर’ नाम दिया गया था जिसने अंग्रेजों की नींद उड़ा रखी थी।

इसके बाद अंग्रेजी हुकुमत ने मंगल पांडे और उनके साथी को गद्दार और विद्रोही घोषित कर दिया। उनके विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ‘पैंडी’ शब्द बहुत प्रचलित हुआ जिसका अभिप्राय गद्दार या विद्रोही था।

मंगल पांडेय के ऊपर कोर्ट मार्शल कर मुकदमा चला और 6 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और फैसले के मुताबिक़ 18 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दी जानी थी, लेकिन मंगल पाण्डे के खौफ के कारण उन्हें निर्धारित तिथि से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल सन 1857 को फांसी पर लटका दिया गया था | जब अंग्रेजों ने इस महान सपूत को फांसी देने से मना कर दिया था तो इसके बाद कलकात्ता से चार जल्लादों को बुलाया गया जिन्होंने मंगल पांडे को फांसी दी और वहीं 21 अप्रैल को उनके सहयोगी रहे ईश्वरी प्रसाद को भी साथ में फांसी दे दी गई थी |

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