तीन तलाक, नागरिकता विधेयक उच्च सदन में लटका – जानिए क्यों ?

नरेंद्र मोदी सरकार के अंतिम सत्र के अंतिम दिन तक विवादित नागरिकता संशोधन विधेयक और तीन तलाक संबंधी विधेयक पारित नहीं किया जा सका है, इसका मुख्य कारण राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान कार्यवाही लगातार बाधित रहना है, इससे इनका निष्प्रभावी होना तय है | तीन जून को वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, कार्यकाल समाप्त होते ही यह दोनों विधयेक निष्प्रभावी हो जायेंगे |

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तीन तलाक विधेयक मुस्लिम महिलाओं से सम्बंधित है, जिसे वर्तमान सरकार पारित करना चाहती थी, परन्तु राज्य सभा में बहुमत न होने के कारण यह विधेयक राज्य सभा से पारित नहीं हो पाए, इसके लिए कुछ समय पूर्व ही केंद्र सरकार अध्यादेश लायी थी |

संसद के नियमानुसार राज्यसभा में पेश किया गया विधेयक, लोकसभा के भंग होने पर निष्प्रभावी नहीं होते हैं, जबकि लोकसभा में पारित कोई विधेयक राज्यसभा में न पारित होने पर यदि उस समय लोकसभा भंग हो जाती है, तो वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाते हैं |

नागरिकता विधेयक

बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आये हिंदू, जैन, इसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को भारत में सात साल तक शरणार्थियों के रूप में रहने के बाद भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता विधेयक में किया गया है |

वर्तमान समय में यह अवधि 12 साल है, 12 साल  के बाद शरणार्थियों से किसी भी प्रकार के दस्तावेज के बिना भारत की नागरिकता प्रदान करने प्रावधान है |

आठ जनवरी को शीतकालीन सत्र के दौरान नागरिकता विधेयक पारित किया गया था | इस विधेयक का असम सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध किया जा रहा है |

तीन तलाक और नागरिकता विधेयक उच्च सदन में क्यों लटका ?

राज्य सभा में बीजेपी के पास 69 सीटें है, एनडीए की सीटें 24 है | इस प्रकार बीजेपी समर्थित 93 सीटें है, जबकि कांग्रेस के पास 50 सीटें है और कांग्रेस के सहयोगी दलों के पास 102 सीटें है | कांग्रेस और सहयोगी दलों को मिलाकर यह संख्या 152 हो जाती है | राज्यसभा में बहुमत के लिए 123 सीटों की जरुरत होती है, इसी कारण यह दोनों विधेयक राज्य सभा से पास नहीं हो पाए है |

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