जानिए कब है विश्‍वकर्मा पूजा, पूजन विधि, आरती और महत्‍व

0
713

मंगलवार 17 सितंबर को विश्‍वकर्मा पूजा की जाएगी| इस पूजा का अपना एक विशेष महत्‍व है| जानकारी देते हुए बता दें कि, विश्‍वकर्मा के जन्‍मदिवस को विश्‍वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है|  विश्‍वकर्मा को भी देवताओं के वास्‍तुकार के रूप में पूजा जाता है| मान्‍यता है कि, उन्‍होंने देवताओं के लिए महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण किया था, इसलिए विश्‍वकर्मा पूजा के इस ख़ास अवसर पर अधिकतर दफ्तरों में छुट्टी रहती है, इसके साथ ही इस दिन कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है| इस दिन औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा की जाती है| पौराणिक मान्‍यताओं के मुताबिक़, विश्‍वकर्मा सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्म पुत्र हैं|

Advertisement

इसे भी पढ़े: पितृपक्ष आज से शुरू, जानिए क्यों करते है श्राद्ध

इस दिन की जाएगी विश्‍वकर्मा पूजा 

मान्‍यता है कि, भगवान विश्‍वकर्मा का जन्‍म भादो माह में हुआ था | हर साल 17 सितंबर को उनके जन्‍मदिवस को विश्‍वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है |’

जाने भगवान विश्‍वकर्मा के बारे में 

भगवान विश्‍वकर्मा निर्माण के देवता कहे जाते है| मान्‍यता है कि, उन्‍होंने देवताओं के लिए अनेकों भव्‍य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया| इसी के साथ बताया गया है कि, एक बार असुरों से परेशान देवताओं की गुहार पर विश्‍वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों देवताओं के राजा इंद्र के लिए वज्र बनाया| यह वज्र इतना प्रभावशाली था कि असुरों का सर्वनाश हो गया, इसलिए सभी देवताओं में भगवान विश्‍वकर्मा को विशेष स्थान दिया गया है| 

मान्‍यता है कि, उन्‍होंने रावण की लंका, कृष्‍ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्‍थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया| उन्‍होंने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था| इसके अलावा उन्‍होंने भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्‍णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड भी बनाये हैं| इसी के साथ उन्होंने दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्‍पक विमान भी बनाया है| माना जाता है कि, रावण के अंत के बाद राम, लक्ष्‍मण सीता और अन्‍य साथी इसी पुष्‍पक विमान पर बैठकर अयोध्‍या लौटे थे|

इसे भी पढ़े: जानिए- क्यों मनाया जाता है यह त्यौहार

ऐसे करें विश्वकर्मा की पूजा 

1.इस दिन सबसे पहले स्‍नान आदि से निवृत्त हो लें इसके बाद अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को अच्छी तरह से साफ कर लें

 2.घर के मंदिर में बैठकर विष्‍णु जी की पूजा करते हुए पुष्‍प चढाएं

 3.एक कमंडल में पानी लेकर उसमें पुष्‍प डाल दें

 4.इसके बाद भगवान विश्‍वकर्मा का ध्‍यान करना चाहिए

 5.फिर जमीन पर आठ पंखुड़‍ियों वाला कमल बना लें  

 6.इसके साथ ही उस स्‍थान पर सात प्रकार के अनाज रख लें  

 7.अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी को चढ़ाएं

  8.अब चावल पात्र को समर्पित करें और वरुण देव का ध्‍यान करना चाहिए  

  9.इसके बाद सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक देना होता है    

10.फिर भगवान विश्‍वकर्मा को फूल चढ़ाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए  

 11.इसके सबसे आख़िरी में भगवान विश्‍वकर्मा की आरती गाते हुए आरती करनी चाहिए 

भगवान विश्‍वकर्मा की आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।

शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।

ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

 रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।

संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।

सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।

मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥

इसे भी पढ़े: परिवर्तिनी एकादशी आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्‍व

Advertisement