भगवत गीता के चतुर्थ अध्याय के सातवें और आठवें श्लोक में भगवान् ने स्वयं अवतार का प्रयोजन किया है और कहा है कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान हो जाता है, तब-तब सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में, माया का आश्रय लेकर उत्पन्न होता हूं।
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महाभारत के शान्ति पर्व में भगवान विष्णु के कुल 10 अवतार बताये गये है- वहीं भगवान विष्णु ने स्वयं एक श्लोक में बताया है कि हंस: कूर्मश्च मत्स्यश्च प्रादुर्भावा द्विजोत्तम, वराहो नरसिंहश्च वामनो राम एव च, रामो दाशरथिश्चैव सात्वत: कल्किरेव च इसका अर्थ है कि श्री भगवान् स्वयं नारद से कहते हैं, ‘हंस कूर्म मत्स्य वराह नरसिंह वामन परशुराम दशरथ नन्दन राम यदुवंशी श्रीकृष्ण तथा कल्कि ये सब मेरे अवतार हैं।’
इसके अतिरिक्त बताया गया है कि भगवान विष्णु के छह मूल अवतार हैं जैसे-1.वराह 2.नरसिंह 3.वामन 4.परशुराम 5.राम और 6.कृष्ण । वहीं ये भी कहा गया कि बुद्ध के अवतारी होने की कल्पना से पहले इनके इन मूल नामो की रचना हुई है बाद में अन्य अवतारों की भी कल्पना की गई और अब भगवान विष्णु के कुल अवतारों की संख्या चौबीस तक पहुंच गयी है |
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