पति-पत्नी को करीब लाने के लिए कोर्ट दोनों को यौन संबंध बनाने का निर्देश देती है| इस प्रकरण पर एक याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई है। यह याचिका गुजरात नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र ओजस्व पाठक और मयंक गुप्ता नें दाखिल की है| सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच इस याचिका पर विचार करेगी। देश के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह प्रकरण एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया है ।
दायर की गयी याचिका में कहा गया है, कि यह प्रावधान महिला विरोधी है, क्योंकि यह प्रावधान महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध पति के पास जाने पर विवश करता है, याचिका में इसे सामंती मानसिकता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है। छात्रों को ओर से सीनियर ऐडवोकेट संजय हेगड़े ने दलील पेश करते हुए कहा, कि यह कानून कोई लैंगिक भेदभाव करता नहीं दिखता, यह सामंती इंग्लिश लॉ पर आधारित है, जो महिला को पति की निजी संपत्ति के रूप में दर्शाता है, यह संविधान के अनुच्छेद 15 (1) का उल्लंघन करता है।’
यह प्रावधान के अंतर्गत अनुच्छेद 21 का उल्लंघन
ऐडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा, अनुच्छेद 21 के अनुसार यह महिला और पुरुष, दोनों की गरिमा का उल्लंघन करता है| यह महिलाओं पर एक बोझ की तरह है, यह संविधान के अनुच्छेदों 14 और 15(1) का भी उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ताओं की दलील- प्रोविजन फ्यूडल मेंटलिटी
वर्ष 1970 में ब्रिटेन ने वैवाहिक रिश्ते में यौन संबंध का अधिकार बहाल करने का प्रावधान समाप्त कर दिया था। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 9, स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के सेक्शन 22 और कोड ऑफ सिविल प्रॉसिजर 1908 के ऑर्डर 21, रूल 32 और 33 की वैधता को चुनौती दी गई है, साथ ही महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से गठित कमेटी और लॉ कमीशन ने यह प्रावधान समाप्त करनें की मांग की है |