कैप्टेन अमरिंदर ने आखिर बचा ही लिया पंजाब का किला मोदी लहर से, पर कैसे – पढ़े स्टोरी

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लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को देशभर में बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जबकि उत्तरी भारत में पंजाब एक मात्र ऐसा राज्य है, जहाँ मोदी लहर का प्रभाव नहीं हुआ। पूरे देश में पूर्ण रूप से प्रभावी मोदी लहर को रोकने में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की भूमिका अहम रही। अमरिंदर सिंह इस जीत से एक बार फिर मज़बूत होकर उभरे हैं।

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पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं, और मिशन 13 की सफलता के लिए कैप्टन को अकेले ही राजनीतिक लड़ाई लड़नी पड़ी|  भारतीय जनता पार्टी को ठेंगा दिखाते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री की पत्नी प्रेनीत कौर पटियाला से चौथी बार सांसद चुनीं गईं। प्रेनीत कौर ने अपने प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) – भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी सुरजीत सिंह रखरा को 1,62,718 मतों से पराजित किया।

एक ओर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने प्रचार से दूरी बना ली, तो दूसरी ओर उनकी ही सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू खुलकर कैप्टन के ख़िलाफ़ विद्रोह करते नजर आये। पंजाब से दो बार मुख्यमंत्री रह चुके अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से आठ पर जीत दिलाई।

पंजाब में बीजेपी व अकाली दल 84 के सिख दंगों के बहाने कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की पूरी कोशिश करते रहे, परन्तु अमरिंदर सिंह की राष्ट्रवादी छवि ने पंजाब में मोदी लहर को हावी नहीं होने दिया। हालाँकि शहरों में मत विभाजित हुए, लेकिन इसके बावजूद यहाँ कांग्रेस का ही पलड़ा भारी रहा।

चुनावों के दौरान अमरिंदर सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया था, कि जो भी मंत्री व विधायक अपने क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिलवा सकेंगे, उनका सियासी भविष्य अधिक उज्ज्वल नहीं होगा। मुख्यमंत्री ने तो यह भी कह दिया था, कि जो विधायक अपने क्षेत्रो में हारेंगे, उन्हें अगली बार से पार्टी द्वारा टिकट नहीं दिया जायेगा।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की तरफ़ से यह संदेश अमरिंदर सिंह ने पूरे प्रदेश में फैला दिया, जिसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। मुख्यमंत्री के बयान के बाद कांग्रेसी विधायकों व नेताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ गया, जिसके बाद उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रो में कमान संभाल ली थी।

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